Adivasi Meaning In Hindi: क्या आप जानना चाहते हैं कि आदिवासी कौन है? भारत में कितनी आदिवासी जातियां हैं? अगर आप इन सवालों के जवाब ढूंढ रहे हैं, तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं।
इस ब्लॉग पोस्ट में, हम “आदिवासी” शब्द की गहराई से पड़ताल करेंगे। हम भारत में आदिवासी समुदायों के इतिहास, संस्कृति और योगदानों को समझेंगे। हम यह भी देखेंगे कि वे आज किन चुनौतियों का सामना करते हैं और हम उनके अधिकारों की रक्षा के लिए क्या कर सकते हैं।
आदिवासी का अर्थ क्या होता है? Adivasi Meaning in Hindi
आदिवासी शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है: आदि और वासी।
- आदि का मतलब होता है शुरुआत या प्रारंभ।
- वासी का मतलब होता है रहने वाला या निवास करने वाला।
जब हम इन दोनों शब्दों को मिलाते हैं तो इसका मतलब होता है “शुरुआत से रहने वाला” या दूसरे शब्दों में “मूलवासी“।
सरल शब्दों में कहें तो, आदिवासी वे लोग होते हैं जो किसी क्षेत्र में सबसे पहले रहने आए थे। वे उस क्षेत्र की संस्कृति, भाषा और परंपराओं को जानते हैं और उससे जुड़े हुए हैं।
आदिवासी कौन है?
“आदिवासी” शब्द “Aboriginal (एबोरिजिनल)” का हिंदी अनुवाद है। इसका उपयोग “किसी भौगोलिक क्षेत्र के उन निवासियों के लिए किया जाता है जिसका उस भौगोलिक क्षेत्र से पुराना सम्बन्ध हो। अर्थात यह कहा जाता है कि आदिवासी ही किसी देश के मूलवासी होते हैं।”
उदाहरण के लिए:
- भारत में रहने वाले आदिवासियों को “आदिवासी” कहा जाता है।
- ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले आदिवासियों को “एबोरिजिनल” कहा जाता है।
- अमेरिका में रहने वाले आदिवासियों को “नेटिव अमेरिकन” कहा जाता है।
“सन 1943 में, एक प्रसिद्ध मानवशास्त्री, वेरियर एल्विन ने आदिवासियों के बारे में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही थी. उन्होंने कहा था कि ‘आदिवासी भारत वर्ष की वास्तविक स्वदेशी उपज है जिनकी उपस्थिति में प्रत्येक व्यक्ति विदेशी है । ये वे प्राचीन लोग हैं जिनके नैतिक अधिकार और दावे हजारों वर्ष पुराने हैं।’ एल्विन के इन विचारों को हमारी संविधान सभा में भी रखा गया था. उन्होंने यह भी कहा था कि आदिवासियों के इलाकों को ‘राष्ट्रीय उपवन‘ की तरह संरक्षित किया जाना चाहिए.”
सरल शब्दों में, एल्विन ने आदिवासियों को भारत का सबसे मूल्यवान खजाना बताया। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए और उनके रहने की जगह को सुरक्षित रखना चाहिए।
आदिवासी भारत वर्ष की वास्तविक स्वदेशी उपज है जिनकी उपस्थिति में प्रत्येक व्यक्ति विदेशी है । ये वे प्राचीन लोग हैं जिनके नैतिक अधिकार और दावे हजारों वर्ष पुराने हैं।
भारत के आदिवासी का संवैधानिक नामकरण का विवाद
भारत में आदिवासी समुदायों को संविधान में अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) के रूप में मान्यता दी गई है। इसे संक्षेप में अ.जा.जा. या ST कहा जाता है। लेकिन आम बोलचाल में और कई सरकारी दस्तावेजों में उन्हें ‘आदिवासी’ भी कहा जाता है।
भारत में आदिवासियों की जनसंख्या जनगणना 2011 के अनुसार लगभग 10.45 करोड़ जो राष्ट्रीय जनसंख्या का 8.6% है। हालाँकि 705 आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त जातीय समूह हैं, लेकिन कई और जातीय समूह हैं जो अनुसूचित जनजाति के दर्जे के लिए योग्य हैं, लेकिन जिन्हें आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है। इसलिए, आदिवासी समूहों की कुल संख्या निस्संदेह आधिकारिक आंकड़े से अधिक है।
क्यों हुआ विवाद?
संविधान सभा में जब आदिवासी समुदायों के लिए विशेष प्रावधानों पर चर्चा हुई, तो सबसे बड़ा सवाल था कि उन्हें किस नाम से संबोधित किया जाए। इस मुद्दे पर ठक्कर बापा और जयपाल सिंह जैसे प्रमुख नेताओं का नाम उल्लेखनीय है। ठक्कर बापा आदिम समाज के सेवक थे और वे जनजातियों को ‘आदिवासी’ कहना पसंद करते थे। जयपाल सिंह ने भी संविधान में ‘अनुसूचित जनजाति’ के बजाय ‘आदिवासी’ शब्द का इस्तेमाल करने का जोरदार समर्थन किया।
हालांकि, संविधान के मूल अंग्रेजी संस्करण में ‘आदिवासी’ शब्द का इस्तेमाल नहीं हुआ, लेकिन इसके हिंदी अनुवाद में इस शब्द को शामिल किया गया। भारत सरकार द्वारा 1955 में प्रकाशित एक पुस्तक का शीर्षक ही ‘आदिवासी’ था।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कैलास एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य ट्र.तालुका पीएस, 5 जनवरी, 2011 निर्णय में कहा था कि हिंदी अनुवाद “जनजातीय लोग (अनुसूचित जनजाति या आदिवासी), जो संभवतः भारत के मूल निवासियों के वंशज हैं, लेकिन अब हमारी कुल जनसंख्या का लगभग 8% ही हैं।”
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आदिवासियों का इतिहास
- प्राचीन निवासी: आदिवासी समुदाय भारत के स्वदेशी उपज हैं। वे प्रारंभ से इस देश की भूमि पर रह रहे हैं।
- स्वतंत्र जीवन: उन्होंने सदियों तक अपनी स्वतंत्र संस्कृति और जीवन शैली को बनाए रखा। वे प्रकृति के साथ गहरा संबंध रखते थे और जंगलों में रहकर खेती और शिकार करते थे।
- साम्राज्यवादी आक्रमण: ब्रिटिश शासन के दौरान आदिवासी समुदायों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उनकी भूमि हड़पी गई, उनकी संस्कृति को कुचला गया और उन्हें अनेक तरह के शोषण का सामना करना पड़ा।
- स्वतंत्रता संग्राम: आदिवासी समुदाय ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।
आदिवासियों का संस्कृति
- प्रकृति पूजन: आदिवासी समुदाय प्रकृति को पूजते हैं और उसका सम्मान करते हैं। उनके धार्मिक विश्वास प्रकृति के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं।
- सामूहिक जीवन: वे सामूहिक जीवन में विश्वास करते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं।
- कला और संस्कृति: आदिवासी समुदायों की अपनी विशिष्ट कला और संस्कृति है। उनके पास अपनी भाषा, संगीत, नृत्य और शिल्प हैं।
- पारंपरिक ज्ञान: उनके पास पारंपरिक ज्ञान का भंडार है, जिसमें औषधीय पौधों, जंगलों के संसाधनों और पर्यावरण संरक्षण के बारे में जानकारी शामिल है।
आदिवासियों का योगदान
- जैव विविधता संरक्षण: आदिवासी समुदाय जैव विविधता के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे जंगलों को बचाने और पर्यावरण को संरक्षित करने में योगदान देते हैं।
- पारंपरिक ज्ञान: उनका पारंपरिक ज्ञान आधुनिक विज्ञान के लिए एक अनमोल खजाना है।
- भारतीय संस्कृति: उन्होंने भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाया है। उनकी कला, संगीत और नृत्य भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं।
- स्वदेशी आंदोलन: कई आदिवासी समुदाय स्वदेशी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
आदिवासियों का चुनौतियाँ
आज के समय में आदिवासी समुदाय कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इनमें भूमि हरण, वनों की कटाई, जल प्रदूषण, सामाजिक उत्पीड़न और आर्थिक असमानता प्रमुख हैं। आधुनिक विकास के नाम पर आदिवासियों की जमीनें हड़पी जा रही हैं और उनकी जीवन शैली और संस्कृति खतरे में है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न और उत्तर
आदिवासियों का धर्म क्या है?
भारतीय आदिवासी समुदाय किसी भी लिखित धर्मग्रंथ के अनुसार किसी धर्म का पालन नही करते हैं। ये लोग प्रकृति (जैसे – पेड़ों, पहाड़ों, नदियों, सूर्य, चंद्रमा आदि) और अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं और मानते हैं।
निष्कर्ष
आदिवासी समुदाय भारत की विविधता का एक अनमोल खजाना हैं। आदिवासी शब्द का प्रयोग हमेशा सम्मान के साथ किया जाना चाहिए। वे हमारे देश की संस्कृति और विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उन्हें समझना और उनका सम्मान करना हम सबकी जिम्मेदारी है। हमें उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करना चाहिए और उनके विकास में योगदान देना चाहिए।